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टूट चुका था मैं....

टूट चुका था मैं....

स्वयं को टूटने से बचाना
वास्तव में स्वयं में एक सबसे बड़ी चुनौती है
टूटना और बिखरना तो रीत है जिंदगी की मगर टूट कर बिखरे रहना तो वही बात हो गई की हममें कोई जिंदगी ही नहीं और निर्जीव को ही संभलने के लिए दूसरे सजीवों के सहायता की आवश्यकता होती है


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