जब हमारी सोच हमारी होती है
और फैसले अपने होते हैं तो
तो 
हमारे होश और जोश दूसरों के उत्साह वर्धन का प्यासा क्यों होती है

जो चन प्रेरणा से उत्साहित
और एक बुराई से हतोत्साहित हो जाती है