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अहम एक ऐसा विष है

अहम एक ऐसा विष है जिसे लोग शौक से पीते हैं शौक मात्र के अहम का प्याला जीवन तबाह कर देता है फिर इसे उतारने वाला श्रेष्ठकर बन जाता है







मैंने, मैंने क्या हम सबने अहम के प्याले में अह्मधारियों को डूबते देखा है, कि कैसे लोग अहंकारी हो जाते हैं बिल्कुल कोई तो अधजल गहरी छलकत जाए को चरितार्थ करते हैं तो कोई सम्पत्ति के धनी मानवता की हानि कर बैठते हैं।
  उनका तो बस वही हस्र होता है जिन्हें हम सबने अपने जीवन में देखा है बस किरदार थोड़े अलग अलग लोगों की है। हां हमने बदलते देखा है उन लोगों को, जो कभी मतलबी हुआ करते थे और आज भी गगन चुंबी तक पहुंचने पर मतलबी लोगों से ही संबंध रखते हैं।
बिल्कुल बिरादरी वाले की बात करते नहीं थकते, अब शुरू होती है तुलना बस यहीं से तो शुरू होती है रिश्ते के पवित्रता की हानि।

इसलिए लिखने का तात्पर्य 
आज से कोई अहंकारी न रहे 
सब के अहम को तोड़ने की 
एक प्रण तुम भी कर लो
चाहे वह अहंकारी निर्जीव ही क्यों न हो
यहां निर्जीव का तात्पर्य एक ऐसे मंजिल से है जो कि बहुत कठिन है जिन मंजिलों को बहुत गुमान है और ये भ्रम है कि उन तक कोई नहीं पहुंच सकता






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